Sunday

तलाश सुबह की

यातनाओं के घने कोहरे में
भ्रम के जंगलों के बीच
टूटी उलझी कल्पनाएँ
रास्ते तलाशती है,
दर्द का समंदर पीने के बाद
रेगिस्तान की आँधियों में
थकी कमज़ोर आँखें
नदी का आगोश तलाशती हैं,
अँधेरा ख़त्म न हो सकेगा
जिन्दगी ख़त्म होने तक
फिर भी हर रात
मुट्ठी भर सुबह तलाशती है.

15 comments:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

मोना जी ,
बहुत अच्छी कविता खासकर ये पंक्तियाँ ..काफी गहरी सोच vali हैं
अँधेरा ख़त्म न हो सकेगा
जिन्दगी ख़त्म होने तक
फिर भी हर रात
मुट्ठी भर सुबह तलाशती है

डॉ .अनुराग said...

जिन्दगी ख़त्म होने तक
फिर भी हर रात
मुट्ठी भर सुबह तलाशती है.

आपके लेखन में एक गंभीरता है ओर कविता महज़ लिखने के लिए नहीं लिखी होती है हर बार इसके शब्द .जैसे किसी विम्ब की रचना करते है .हर कविता में एक सार्थकता है

रंजू भाटिया said...

जिन्दगी ख़त्म होने तक
फिर भी हर रात
मुट्ठी भर सुबह तलाशती है.

बहुत सही ..यही उम्मीद फिर ज़िन्दगी को आगे का रास्ता भी दिखा देती है ..बहुत अच्छा लिखती है आप ..शुक्रिया

Harshvardhan said...

achchi post likhi hai aapne shukria

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah..wa

के सी said...

योगेन्द्र जी ने वाह कहा है तो सच मानिये एक उम्दा कवि से आपने तारीफ पाई और मुझे कविताये पसंद आई. आपको नीरा जी के यहाँ देखा.

हरकीरत ' हीर' said...

दर्द का समंदर पीने के बाद
रेगिस्तान की आँधियों में
थकी कमज़ोर आँखें
नदी का आगोश तलाशती हैं,
अँधेरा ख़त्म न हो सकेगा
जिन्दगी ख़त्म होने तक
फिर भी हर रात
मुट्ठी भर सुबह तलाशती है.


bhot khoob....!!

neera said...

सरल, सहज, अर्थपूर्ण !

Alpana Verma said...

दर्द का समंदर पीने के बाद
रेगिस्तान की आँधियों में
थकी कमज़ोर आँखें
नदी का आगोश तलाशती हैं,

गहन भाव लिए हुए है यह रचना.
दर्द में कहीं गहरी डूबी हुई सी.
सफल अभिव्यक्ति ,सुन्दर रचना

गर्दूं-गाफिल said...

दर्द का समंदर पीने के बाद
रेगिस्तान की आँधियों में
थकी कमज़ोर आँखें
नदी का आगोश तलाशती हैं,
अँधेरा ख़त्म न हो सकेगा
जिन्दगी ख़त्म होने तक
फिर भी हर रात
मुट्ठी भर सुबह तलाशती है.


बहुत सुंदर भाव ,शसक्त सम्प्रेष्ण । लिखते रहिये

रंजना said...

वाह !! वाह !! बहुत खूब !!
अति भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना...वाह !!

बादल१०२ said...

bahut khoob bahut hi aacha likha hai aap ne

tarni said...

atayant marmspashi kavita hai aapki..
wakaiii bahut khubsurat hai

अभिन्न said...

बहुत गहरी सोच और सुन्दर अभिवयक्ति

Anonymous said...

aayegi vo subah bhi kabhi
kiya intzam hai,
chup se rah rahe jeevan me
aayegi bahaar hai,
hat jaayenge kohre,
mitenge dard bhi,
suraj niklne bhar ka intezar hai,
fir yaad dilaanaa ke aa pahunchi subah