तुलसी चौरे पर हर सांझ
दीप जलाती मेरी माँ
दिनभर गृहस्थी की फटी गुदड़ी में ,
पैबंद लगाने की अपनी सारी
जद्दोज़हद के बाबजूद,
अतीत के बक्से से निकालकर
सुख की चादर लपेट लेती है ।
सर्वे भवन्तु सुखिनः ....
उसकी प्रार्थना के स्वरों में
घुल जाते हैं ,
कितने ही मंदिरों के घंटों और
मस्जिदों के अजानों के स्वर ।
विश्व मंगल की कामना करती
बंद आंखों से पिघलने लगते हैं,
दिनभर में समेटे दर्द के शिलाखंड
हारी हुई लड़ाइयों से जूझने की विवशता ,
फिर कुछ ही पलों में माँ
अपने ईश्वर को उसकी दी हुई
सारी पीड़ा लौटा देती है ,
और समेट लेती है
नन्हे से दिए का मुट्ठी भर उजाला,
उकेरने लगती है
हम सब की ज़िन्दगी के ,
काले अंधियारे पृष्ठों पर
सुख के सुनहले चित्र।
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12 comments:
फिर कुछ ही पलों में माँ
अपने ईश्वर को उसकी दी हुई
सारी पीड़ा लौटा देती है ,
और समेट लेती है
नन्हे से दिए का मुट्ठी भर उजाला,
उकेरने लगती है
हम सब की ज़िन्दगी के ,
काले अंधियारे पृष्ठों पर
सुख के सुनहले चित्र।
Mona ji,
Ma ke oopar likhi gayee ek sundar rachna ...apko bahut bahut badhai.
mere blog par ane ke liye shukriya.
Poonam
कितने ही मंदिरों के घंटों और
मस्जिदों के अजानों के स्वर ।
विश्व मंगल की कामना करती
बंद आंखों से पिघलने लगते हैं,
दिनभर में समेटे दर्द के शिलाखंड
हारी हुई लड़ाइयों से जूझने की विवशता ,
फिर कुछ ही पलों में माँ
अपने ईश्वर को उसकी दी हुई
सारी पीड़ा लौटा देती है ,
और समेट लेती है
नन्हे से दिए का मुट्ठी भर उजाला,
ek bahut hi maarmik aur
samvedan-sheel rachna.....
kalaa aur bhaav-paksh dono
saraahneey . . . .
---MUFLIS---
मोना जी
अभिवंदन
आपके ब्लॉग को पहली बार पढ़ा
सुन्दर है
ब्लॉग पर पोस्ट की गई कविता "माँ" पढी .
वाकई माँएँ ऐसी ही होती हैं. और नहीं होतीं तो उसके पीची जरूर कोई गहरी बात होती होगी,
"उकेरने लगती है
हम सब की ज़िन्दगी के ,
काले अंधियारे पृष्ठों पर
सुख के सुनहले चित्र। "
अच्छा लगा
बधाई
- विजय तिवारी ' किसलय
अद्भुत कविता.....अपने आप में कई सवाल समेटे..कई जवाब लिए .बरस के बरस गुजर गये ...माँ अब भी वही खड़ी है .अपने शोक एब्सोर्ब्सर को रिचार्ज कर अगले दिन का सामना करने के लिए ...
माननीय महोदया,
सादर अभिवादन
मैं आपके भोपाल शहर के पस इटारसी शहर मं रह रहा हूं। आपक ेब्लाग पर साहित्यिक विधाओं से परिचय प्राप्त हुआ। यदि आप साहित्यिक पत्रिकाओं की समीक्षा पढ़ना चाहती है तो मेरे ब्लाग पर अवश्य पधारे आप रिनाश नहीं होंगी।
अखिलेश शुक्ल
संपादक कथा चक्र
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भावपूर्ण कविता। बधाई।
इस कविता को पढ़ कर, मोना जी आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हो गया...शब्द शिल्प का अद्भुत नमूना मिलता है आप की रचना में...संवेदनाओं को जगाती बहुत ही मार्मिक रचना...आपको इस विलक्षण लेखन पर बहुत बहुत बधाई.
नीरज
मोना जी ,
बहुत अच्छी कवितायेँ हैं आपकी ..शिल्प एवं भावः ..दोनों ही दृष्टियों से ....आशा है आगे भी
ऐसी ही रचनाएँ पढने को मिलेंगी...शुभकामनायें .
हेमंत कुमार
mona ji kavita aur aapka blog achcha laga
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Jai..HO....
माँ के रूप का अदभुत भाव .बहुत अच्छी सच्ची लगी आपकी यह रचना
फिर कुछ ही पलों में माँ
अपने ईश्वर को उसकी दी हुई
सारी पीड़ा लौटा देती है ,
और समेट लेती है
नन्हे से दिए का मुट्ठी भर उजाला,
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ..भावपूर्ण रचना.
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