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तलाश सुबह की
यातनाओं के घने कोहरे में भ्रम के जंगलों के बीच टूटी उलझी कल्पनाएँ रास्ते तलाशती है,दर्द का समंदर पीने के बाद रेगिस्तान की आँधियों में थकी कमज़ोर आँखें नदी का आगोश तलाशती हैं, अँधेरा ख़त्म न हो सकेगा जिन्दगी ख़त्म होने तक फिर भी हर रात मुट्ठी भर सुबह तलाशती है.
15 comments:
मोना जी ,
बहुत अच्छी कविता खासकर ये पंक्तियाँ ..काफी गहरी सोच vali हैं
अँधेरा ख़त्म न हो सकेगा
जिन्दगी ख़त्म होने तक
फिर भी हर रात
मुट्ठी भर सुबह तलाशती है
जिन्दगी ख़त्म होने तक
फिर भी हर रात
मुट्ठी भर सुबह तलाशती है.
आपके लेखन में एक गंभीरता है ओर कविता महज़ लिखने के लिए नहीं लिखी होती है हर बार इसके शब्द .जैसे किसी विम्ब की रचना करते है .हर कविता में एक सार्थकता है
जिन्दगी ख़त्म होने तक
फिर भी हर रात
मुट्ठी भर सुबह तलाशती है.
बहुत सही ..यही उम्मीद फिर ज़िन्दगी को आगे का रास्ता भी दिखा देती है ..बहुत अच्छा लिखती है आप ..शुक्रिया
achchi post likhi hai aapne shukria
Wah..wa
योगेन्द्र जी ने वाह कहा है तो सच मानिये एक उम्दा कवि से आपने तारीफ पाई और मुझे कविताये पसंद आई. आपको नीरा जी के यहाँ देखा.
दर्द का समंदर पीने के बाद
रेगिस्तान की आँधियों में
थकी कमज़ोर आँखें
नदी का आगोश तलाशती हैं,
अँधेरा ख़त्म न हो सकेगा
जिन्दगी ख़त्म होने तक
फिर भी हर रात
मुट्ठी भर सुबह तलाशती है.
bhot khoob....!!
सरल, सहज, अर्थपूर्ण !
दर्द का समंदर पीने के बाद
रेगिस्तान की आँधियों में
थकी कमज़ोर आँखें
नदी का आगोश तलाशती हैं,
गहन भाव लिए हुए है यह रचना.
दर्द में कहीं गहरी डूबी हुई सी.
सफल अभिव्यक्ति ,सुन्दर रचना
दर्द का समंदर पीने के बाद
रेगिस्तान की आँधियों में
थकी कमज़ोर आँखें
नदी का आगोश तलाशती हैं,
अँधेरा ख़त्म न हो सकेगा
जिन्दगी ख़त्म होने तक
फिर भी हर रात
मुट्ठी भर सुबह तलाशती है.
बहुत सुंदर भाव ,शसक्त सम्प्रेष्ण । लिखते रहिये
वाह !! वाह !! बहुत खूब !!
अति भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना...वाह !!
bahut khoob bahut hi aacha likha hai aap ne
atayant marmspashi kavita hai aapki..
wakaiii bahut khubsurat hai
बहुत गहरी सोच और सुन्दर अभिवयक्ति
aayegi vo subah bhi kabhi
kiya intzam hai,
chup se rah rahe jeevan me
aayegi bahaar hai,
hat jaayenge kohre,
mitenge dard bhi,
suraj niklne bhar ka intezar hai,
fir yaad dilaanaa ke aa pahunchi subah
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