हम पिछली सदी की विरासत
कांधों पर लादे हुए लोग ।
बार-बार पीछे मुड़ देखते,
गुजरे वक्त की तलछट में
सैलाब टटोलते हैं ।
नियॉन लाइट की चौंध में
उजाले तराशते
खोखली हंसी के प्याले में
सुख की बूँदें निचोड़ते हैं।
छिपकर हजार मुखौटों में
अपनी ही शिनाख्त का
सामान सहेजते हैं
हम पिछली सदी की विरासत
कांधों पर लादे हुए लोग।
लटके हैं असुरक्षा की सलीब में,
शापित हैं अश्वत्थामा की तरह
रिसते घावों का दंश लिए
निरंतर भटकने को।
कांधों पर लादे हुए लोग ।
बार-बार पीछे मुड़ देखते,
गुजरे वक्त की तलछट में
सैलाब टटोलते हैं ।
नियॉन लाइट की चौंध में
उजाले तराशते
खोखली हंसी के प्याले में
सुख की बूँदें निचोड़ते हैं।
छिपकर हजार मुखौटों में
अपनी ही शिनाख्त का
सामान सहेजते हैं
हम पिछली सदी की विरासत
कांधों पर लादे हुए लोग।
लटके हैं असुरक्षा की सलीब में,
शापित हैं अश्वत्थामा की तरह
रिसते घावों का दंश लिए
निरंतर भटकने को।
25 comments:
जिजीविषा के पैरों में पड़ी बेडियों और सन्दर्भों से झांकते शब्दों को अच्छा चित्रण किया है एक सम्पूर्ण कविता के लिए बधाई !
मोना जी,
हरकीरत जी के ब्लॉग से आना हुआ "आरसी" पर।
हकीकत में अक्षर-अक्षर बिम्बित करता है जीवन में ओढे गये आदर्शों को/ औपचारिकताओं में बंधा हुआ दिन / अतीत को ढोते हुये किया हुआ इंतजार।
बहुत ही अच्छे से विषय को निखारा है, बधाईयाँ।
मुकेश कुमार तिवारी
हम पिछली सदी की विरासत
कांधों पर लादे हुए लोग ।
True...
'लटके हैं असुरक्षा की सलीब में,
शापित हैं अश्वत्थामा की तरह
रिसते घावों का दंश लिए
निरंतर भटकने को। '
ek kadwee haqiqat.
behad khubsurat bhivyakti.
अच्छे शब्द,
सुन्दर भावपूर्ण रचना।
खोखली हंसी के प्याले में
सुख की बूँदें निचोड़ते हैं।
behtarin pantiyan hain ye.Do pantiyon mein aapne sari baat spst kar di hai.
Achchhi rachana ke liye dhanyawad.
Navnit Nirav
khoobsurat...
गुजरे वक्त की तलछट में
सैलाब टटोलते हैं ।
नियॉन लाइट की चौंध में
उजाले तराशते
खोखली हंसी के प्याले में
सुख की बूँदें निचोड़ते हैं।
छिपकर हजार मुखौटों में
अपनी ही शिनाख्त का
सामान सहेजते हैं
एक एक शब्द अपने में कई अर्थ समेटे है...आपकी कविता .किसी गध की माफिक है जिसे यूँ ही नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता ....
हम सचमुच पिछली सदियों ,युगों से चिपके बैठे हैं,हमने अवैज्ञानिकता को परंपरा और अतार्किकता को आस्था बनाया हुआ है...."हमारे शास्त्रों में लिखा है कि ..." पर हम शुरू हो कर ख़त्म भी हो जाते हैं ....पर हम किसी शाम ताज़ा हवा में अंगडाई लेंगे और पिछली सदी का पसीना माथे से पोंछ डालेंगे
खोखली हंसी के प्याले में
सुख की बूँदें निचोड़ते हैं।
छिपकर हजार मुखौटों में
अपनी ही शिनाख्त का
सामान सहेजते हैं
बहुत खूब. सुन्दर प्रस्तुति. मुखौटा उतार कर सच का दर्शन कराया.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत अच्छी कविता.
me thodi aalaaochnaa karnaa chahtaa hoo..bura to nahi manengi naa aap???
kuchh esa rahne bhi deti ki aalochnaa kar paataa//////
bahut umda ..yatharthvaad.
sirf dukh, avsad, mayusi- kahin koi gati nahin!
kya hai ye?
बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने ......
एक श्वेत श्याम सपना । जिंदगी के भाग दौड़ से बहुत दूर । जीवन के अन्तिम छोर पर । रंगीन का निशान तक नही । उस श्वेत श्याम ने मेरी जिंदगी बदल दी । रंगीन सपने ....अब अच्छे नही लगते । सादगी ही ठीक है ।
bhut sundar rachna apne ap ko dhudne
ki kashmkash ko bhut khubsurti se abhivykt kiya hai apne .
bdhai
shobhana
"'लटके हैं असुरक्षा की सलीब में,
शापित हैं अश्वत्थामा की तरह
रिसते घावों का दंश लिए
निरंतर भटकने को। '"
पंक्तियों ने बहुत गहरे अर्थ समझा दिए...
क्यों हम सब अभिशप्त हैं?
क्यों कोई दवा नहीं है??
बहुत सुन्दर लिखा है..
~जयंत
नियॉन लाइट की चौंध में
उजाले तराशते
खोखली हंसी के प्याले में
सुख की बूँदें निचोड़ते हैं।
बहुत खूब मोना जी !!!
मोना जी ,
बहुत वैचारिक और यथार्थपरक कविता ...
पूनम
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति ।
अरे आप तो सन्डे को ज्यादा गहरा सोच डालते हो....इस गहराई के लिए आपको बधाई.....और कविता के लिए....धन्यवाद......और भविष्य के लिए....शुबकामनाएं....!!
Jeeva ke satya ko darshaati aapki rachnayeiN bahoot hi khoobsoorat rahieN....daad qabool kareiN
Harash
गहरी वेदना और उससे उबरने की छटपटाहट शब्दधारा बन कर सामने आई है।
बेहतरीन रचना है ये आपकी...सच्चाई बयां करती हुई....बधाई
नीरज
मोना जी
आपका ब्लाग पढ़ा। बहुत अच्छा लगा। ब्लाग पर मौलिक रचना पढ़ना अच्छा लगा। मेरा मानना है कि शौक भी एक पौधे की तरह होता है तमाम व्यस्तता के बाद भी उसमें पानी देने की चाहत मजबूत इच्छा शक्ति वाले ही पूरा कर पाते हैं। आपने कविता लिखने के शौक को बरकरार रखने की जो पहल की हैं। वह धन्यवाद योग्य है।
main pahli baar aapke blog par aaya hoon....
aapki is rachna ne mujhe kaafi prabhavit kiya hai .. man ko choo gayi aur haqiqat ko bayan karti hui hai ...
aapko dil se badhai
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad bhare comment ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
vijay
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