टूटी दीवार के आसपास
फुदकती नन्ही गौरैया की चहचहाहट,
फूंकती है प्राण, सुबह की मृत देह में।
और खंडहर में बसी दो बूढी आँखें,
जाग उठती हैं, मीलों दूर बसे,
बेटे को देखने की लालसा लिए।
गौरैया जानती है उड़ना सीखने पर,
परिंदे नहीं लौटा करते घोंसलों की ओर
पर बूढी आँखें समझते हुए भी
नहीं छोड़ती हरकारे का इंतज़ार।
और धीरे धीरे मरता दिन
रात का कफ़न ओढ़ सो जाता है,
खंडहर की एक ईंट और गिर जाती है।
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3 comments:
बेहतरीन कविता, धन्यवाद
गौरैया जानती है उड़ना सीखने पर,
परिंदे नहीं लौटा करते घोंसलों की ओर
पर बूढी आँखें समझते हुए भी
नहीं छोड़ती हरकारे का इंतज़ार।
और धीरे धीरे मरता दिन
रात का कफ़न ओढ़ सो जाता है,
खंडहर की एक ईंट और गिर जाती है।
अद्भुत लेखन ...संवेदना ओर विम्ब से भरपूर ....वाकई ....
और खंडहर में बसी दो बूढी आँखें,
जाग उठती हैं, मीलों दूर बसे,
बेटे को देखने की लालसा लिए।
इन्तजार की यह सबसे बड़ी इन्तहा है .बहेद खूबसूरत लिखा है आपने
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