शांत नीला गहरा जल जैसे मन पर सागर का जल तूफ़ान से पहले ही शांत रहता है कहीं मन मे छाई इस शांति के बाद तूफ़ां तो नही उठेगा भावनाओं की लहरों पर डूबता उतरता मन सोचों के जंगल मे भटकता मन स्थिर नही होता मन लोगों की बातों को सोचता मन बहुत कुछ पाकर भी असंतुष्ट रहता मन आखिर चाहता क्या है मन
.सबसे पहले आपका मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिए सुस्वागतम,आप जैसे गुणी साहित्यकार वासत्व में बड़े प्रेरक होते है .....आपकी प्रस्तुत रचना में जीवन की आकाँक्षाओं को ... 'असीम अनंत आकाश ' और और उनके pane e samarthy को gauraiya के nanhe pankh से tulna करने और any prtibimbo को प्रस्तुत करके आपने अपनी saamrthy का parichay दे दिया है बहुत gahra chntan और prastutikarn है आपका
अपनी परिभाषा खोजते,
रह जाता अतृप्त ही,
इस अनंत आकाश में
एक बिंदु बनकर आपकी lekhni को naman (trutiyon ke liye kshma )
शब्द , भाव , विचार , अभिव्यक्ति ..... सब का बहुत ही खूब समन्वय , समावेश ज़िंदगी की कशमकश में ख़ुद को तलाशने की की अजब सी परिभाषा ... लेकिन.... सहज, सरल, प्रयास और उस प्रयास में सफलता के उपलक्ष्य की शानदार प्रस्तुति .. बधाई स्वीकारें . . . . ---मुफलिस---
तन पाना चाहे सुख की घनी छांह, आत्मा छटपटाती तन की कारा में, सरलता से गहरी बात कह डाली आपने श्याम कविता या गज़ल में हेतु मेरे ब्लॉग पर आएं http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह http:/katha-kavita.blogspot.com/ दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा सस्नेह श्यामसखा‘श्याम
जीवन अपनी परिभाषा खोजते, रह जाता अतृप्त ही, इस अनंत आकाश में एक बिंदु बनकर ।
जीवन की परिभाषा की तलाश में महज एक बिंदु बन रह जाना. वाह! बहुत सुन्दर ! जीवन का अर्थ तलाशने में अक्सर ऐसे ही व्यक्ति अक्सर भटक कर रह जाता है.. जैसे आप ने गोरैया के माध्यम से व्यक्त किया है.
23 comments:
... सुन्दर,प्रसंशनीय!!!!!!
पाना चाहे सुख की घनी छांह,
आत्मा
छटपटाती तन की कारा में,
और जीवन
अपनी परिभाषा खोजते,
रह जाता अतृप्त ही,
इस अनंत आकाश में
एक बिंदु बनकर ।
मोना जी लाजवाब अभिव्यक्ति......!
गहरी सोच ...!
गहरी शब्दावली ....!
अभिव्यक्ति अपने पीछे एक चिंतन छोड़ जाती है ....जो आपकी सफलता की घोतक है ...!!
आकांक्षा ही जीवन की राह दिखाती है, आकांक्षा ही मनुष्य को इंसान बनाती है।श्
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एक साइंटिस्ट का दुखद अंत
और जीवन
अपनी परिभाषा खोजते,
रह जाता अतृप्त ही,
इस अनंत आकाश में
एक बिंदु बनकर ।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं, पूरी रचना ही प्रभावशाली है...बधाई...
नीरज
सुंदर भावाभिव्यक्ति....
बढ़िया!!
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गौर फरमाएं
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शांत
नीला गहरा जल
जैसे मन
पर
सागर का जल तूफ़ान से पहले ही शांत रहता है
कहीं मन मे छाई इस शांति के बाद
तूफ़ां तो नही उठेगा
भावनाओं की लहरों पर डूबता उतरता मन
सोचों के जंगल मे भटकता मन
स्थिर नही होता मन
लोगों की बातों को सोचता मन
बहुत कुछ पाकर भी असंतुष्ट रहता मन
आखिर चाहता क्या है मन
.सबसे पहले आपका मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिए सुस्वागतम,आप जैसे गुणी साहित्यकार वासत्व में बड़े प्रेरक होते है .....आपकी प्रस्तुत रचना में जीवन की आकाँक्षाओं को ...
'असीम अनंत आकाश ' और और उनके pane e samarthy को
gauraiya के nanhe pankh से tulna करने और any prtibimbo को प्रस्तुत करके आपने अपनी saamrthy का parichay दे दिया है बहुत gahra chntan और prastutikarn है आपका
अपनी परिभाषा खोजते,
रह जाता अतृप्त ही,
इस अनंत आकाश में
एक बिंदु बनकर
आपकी lekhni को naman (trutiyon ke liye kshma )
जबरदस्त अभिव्यक्ति!! कितनी ही गहराई में ले जाती है..बहुत खूब!!
और जीवन
अपनी परिभाषा खोजते
रह जाता अतृप्त ही,
इस अनंत आकाश में
एक बिंदु बनकर ।
सही और सुन्दर गहरी अभिव्यक्ति ..यही मनुष्य का मन खोजता रह जाता है और वक़्त यूँ ही बीतता जाता है ..आप बहुत ज़िन्दगी के करीब का लिखती हैं ..शुक्रिया
तन
पाना चाहे सुख की घनी छांह,
आत्मा
छटपटाती तन की कारा में,
Sundar aur sateek abhivyakti...
अछूती अभिव्यक्ति...मन को छूती हुई...
शब्द , भाव , विचार , अभिव्यक्ति .....
सब का बहुत ही खूब समन्वय , समावेश
ज़िंदगी की कशमकश में ख़ुद को तलाशने की
की अजब सी परिभाषा ...
लेकिन.... सहज, सरल, प्रयास
और उस प्रयास में
सफलता के उपलक्ष्य की शानदार प्रस्तुति ..
बधाई स्वीकारें . . . .
---मुफलिस---
तन
पाना चाहे सुख की घनी छांह,
आत्मा
छटपटाती तन की कारा में,
सरलता से गहरी बात कह डाली आपने
श्याम
कविता या गज़ल में हेतु मेरे ब्लॉग पर आएं
http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com/ दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम
आपने आकांक्षाएं बोल्ड और विराम दे कर लिखा तो मैं भी कविता में उलझा रहा , शब्दों को परिभाषित करती सुन्दर कविता के लिए बधाई !
'गौरैया नन्हे पंख भर,
भूख
चोंच भर दाने तलाशती,
खूबसूरत!
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जीवन
अपनी परिभाषा खोजते,
रह जाता अतृप्त ही,
इस अनंत आकाश में
एक बिंदु बनकर ।
जीवन की परिभाषा की तलाश में महज एक बिंदु बन रह जाना.
वाह! बहुत सुन्दर !
जीवन का अर्थ तलाशने में अक्सर ऐसे ही व्यक्ति अक्सर भटक कर रह जाता है..
जैसे आप ने गोरैया के माध्यम से व्यक्त किया है.
Mona ji,
bahut bhavpoorn kavita aur gahan abhivyakti...badhai.
Poonam
vaakai aakaankshaaye
mahatvaakankshaayen
hoti hi aisi hai
Samuch ichhayein anant hoti hai.
Bahut achchha likh hai aapne.
Navnit Nirav
आत्मा
छटपटाती तन की कारा में,
और जीवन
अपनी परिभाषा खोजते,
रह जाता अतृप्त ही,
इस अनंत आकाश में
एक बिंदु बनकर ।
मोना जी ,
बहुत सरल शब्दों में अIपने दर्शन और अध्यात्म को लिखा है
हेमंत कुमार
achchhi kavita karte hain aap. satya bhi, kavya bhi.
सच बताऊँ..........तो किसी andekhi gahraayi में खो गया मैं....और अब तक khoya ही हुआ हूँ......!!
आकांक्षाएं जीवन की ललक पैदा करती हैं और आकांक्षाएं ही इतिहास लिखने के लिए प्रेरित करती हैं।
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मॉं की गरिमा का सवाल है
प्रकाश का रहस्य खोजने वाला वैज्ञानिक
छटपटाती तन की कारा में,
और जीवन
अपनी परिभाषा खोजते,
रह जाता अतृप्त ही,
sach me jeevan ki paribasha khojte pura jeevan nikal jata hai...
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