बच्चे अब नहीं बनाया करते
गीली रेत के घरोंदे,
दीवारों पर अब नजर नहीं आती
अनगढ़ हाथों की चित्रकारी,
वृद्धाश्रम में बैठी बूढी नानी
अकेले दोहराती परियों की कहानी,
कंप्यूटर से चिपकी नन्ही आंखों को
बचाया जाता है संवेदनाओं के संक्रमण से,
क्योंकि बनाना है
उन्हें मशीनों की तरह,
और मशीनें कभी हंसा या रोया नहीं करती हैं।
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5 comments:
बहुत अच्छी कविता है
kya baat hai bahut hi sundar kavita
sundaar kavita Mona ji...
kya aap jabalpur ke shri Parsayee ji [famous writer] ke relation mein kahin hain?ek jigyasa uthi so poochh liya.
अल्पना जी,
ये मेरा सौभाग्य है की मेरे तार पूज्य श्री परसाई से जुड़े हैं,
क्योंकि बनाना है
उन्हें मशीनों की तरह,
और मशीनें कभी हंसा या रोया नहीं करती हैं।
एक बहुत बड़ा सच कहा है आपने मोना जी बहुत बढ़िया
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