Monday

सुबह!!!

     कल सारा  दिन
     बंजर धरती सा
     चटकता रहा,
     राह भूली बंजारन  सा  
     यहाँ -वहाँ भटकता रहा 
     और रात,
      दर्द के  उलझे  धागों से 
      कहानियाँ बुनती रही ,
      टूटे  सपनों के दरिन्दों से
     मिल साजिशें रचती रही .
      पर जब आँख खुली तो,
     सुबह मेरे सिरहाने बैठ ,
     किरण -किरण सींच कर 
     उजालों के बीज रोप रही थी.

1 comment:

पूनम श्रीवास्तव said...

bina andhere ke ujaale ki kimat pata hi nahi chalti.kuhaasa thodi der baad hi chhnt jaata hai.har raat ke baad bhor ke kirno sa---