मत लिखना,
इस निर्मम सदी का इतिहास।
जिसने मशीनों में प्राण तराशे हैं,
और जीवित इंसानों को
पुतलों में तब्दील कर दिया है
जिसने नदियों के उजले तन पर,
विष कलश उड़ेले हैं,
मौसम के सारे रंगों को
धूसर कर दिया है।
मत लिखना
इस निर्मम सदी का इतिहास।
जिसने अंगडाई लेती तरुनाई की
दूब पर अंगारे सुलगाये हैं,
बूढे दरख्तों की जड़ों को
गमलों का मोहताज बनाया है।
सदियों से दबी हुई आदिम वहशियत
के जीवाश्म को फिर जीवित कर,
खड़ा किया है ।
मत लिखना,
इस निर्मम सदी का इतिहास।
धकेल देना इसे किसी अंध कूप में
ताकि फिर कोई इसे जीवित न कर सके।
Sunday
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22 comments:
अच्छी रचना।
सदी के इतिहास के जरिए मानवजाति के तथाकथित इकहरे विकास पर प्रश्न चिन्ह लगाती हुई।
मौजूदा दौर पर बेहतरीन कटाक्ष .
मैंने अपने ब्लॉग पर एक लेख लिखा है . - फ़ेल होने पर ख़त्म नहीं हो जाती जिंदगी - समय हो तो पढें और कमेन्ट भी दें .
http://www.ashokvichar.blogspot.com
मत लिखना,
इस निर्मम सदी का इतिहास।
धकेल देना इसे किसी अंध कूप में
ताकि फिर कोई इसे जीवित न कर सके।
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बेहतरीन रचना - सामयिक कटाक्ष
बहुत खूब लिखा है आपने
सुन्दर रचना के लिये बधाई
"मत लिखना,
इस निर्मम सदी का इतिहास।
धकेल देना इसे किसी अंध कूप में
ताकि फिर कोई इसे जीवित न कर सके। "
सुन्दर अभिव्यक्ति।
कविता एक कदम आगे और दो कदम पीछे वाली चाल को मूर्त रूप में सृजित करती हुई सी अपनी उपलब्धियों की तहों को खोलती हुई है
सदी से उपजे अवसाद को शब्द पहनाती कविता.
बूढे दरख्तों की जड़ों को
गमलों का मोहताज बनाया है।
सदियों से दबी हुई आदिम वहशियत
के जीवाश्म को फिर जीवित कर,
खड़ा किया है । ....
फिर कहूँगा की आप महज़ लिखने के लिए नहीं लिखती ...कई गहरे अर्थ पीछे छोड़ जाती है ..असल कविता यही है
मत लिखना,
इस निर्मम सदी का इतिहास।
धकेल देना इसे किसी अंध कूप में
ताकि फिर कोई इसे जीवित न कर सके।
सच तो यही लगता है कि इस निर्मम सदी का
इतिहास न लिखा जाए .....
लेकिन इस बुरे दौर को आने वाली नस्लों के आगे लाना ही होगा .
आपकी चिंता व्यर्थ ही नहीं है .....
लेकिन निश्चित रूप से आपकी तरफ से
एक आह्वान भी है ...
नेक और स्तुत्य आह्वान
अभिवादन स्वीकारें
---मुफलिस---
मोना जी ,
बहुत गहन चिंतन को मजबूर कर देने वाली कविता लिखी है आपने .
पूनम
मत लिखना,
इस निर्मम सदी का इतिहास।
धकेल देना इसे किसी अंध कूप में
ताकि फिर कोई इसे जीवित न कर सके।
आज के हालत को उजागर करने वाली एक सशक्त रचना ...बधाई
हेमंत कुमार
आज के हालत और बर्फ होते रिश्ते पर सही लिखा है आपने ..आपकी रचा बहुत पसंद आई ..शुक्रिया
वाह! तीखी और कड़वी सच्चाई अंतर्मन को भेदती...
मोना जी,
इस निर्मम सदी का इतिहास।
जिसने अंगडाई लेती तरुनाई की
दूब पर अंगारे सुलगाये हैं,
बूढे दरख्तों की जड़ों को
गमलों का मोहताज बनाया है।
वास्तविकता को शब्दों का जामा खूब पहनाया है। मन को छू लेने वाली पंक्तियाँ हैं।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
अति सुन्दर अभिव्यक्ति
"मत लिखना,
इस निर्मम सदी का इतिहास।
धकेल देना इसे किसी अंध कूप में
ताकि फिर कोई इसे जीवित न कर सके।"
मन को छूती सुन्दर कविता...
जिसने अंगडाई लेती तरुनाई की
दूब पर अंगारे सुलगाये हैं,
बूढे दरख्तों की जड़ों को
गमलों का मोहताज बनाया है।
सदियों से दबी हुई आदिम वहशियत
के जीवाश्म को फिर जीवित कर,
खड़ा किया है ।
गहरी और सशक्त रचना ......!!
बूढे दरख्तों की जड़ों को
गमलों का मोहताज बनाया है।
bahut kuch bayan karte lafz...
अच्छी रचना से समाज पर अच्छा कटाक्ष है.............
मन करता है कि इस कविता को तिरंगा में लपेट कर मुहर्रम खेल लूं...
swagatam
Blog prabhav shali hai
behtreen rachna/
जिसने मशीनों में प्राण तराशे हैं,
और जीवित इंसानों को
पुतलों में तब्दील कर दिया है..
me bhi to esa hi hu..../
जिसने अंगडाई लेती तरुनाई की
दूब पर अंगारे सुलगाये हैं,
बूढे दरख्तों की जड़ों को
गमलों का मोहताज बनाया है।
सदियों से दबी हुई आदिम वहशियत
के जीवाश्म को फिर जीवित कर,
खड़ा किया है ।
मत लिखना,
in panktiyo ne jyada hi prabhavit kiya/ bahut khoob likhati he aap/
बहुत सुन्दर रचना है। हमने अपनी सुविधाओं के पेड़ पर ज़हरीले फल उगाये हैं। उन्हे खाएं तो मुश्किल और छोड़ें तो बीज बन ज़मीन पर गिरते हैं और कितने ही और पनप जाते हैं।
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