Saturday

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मैदानों पगडंडियों में बिछी घास
धूप के थपेड़ों में झुलसती है।
कहीं पुआल की शक्ल में धू-धू कर जलती है
फिर भी धरती की गहराइयों में
छिपा कर रखती है अपना वजूद
कि कभी तो मौसम का मिजाज रूमानी होगा और...........
कुछ इसी तरह हमारे वे सपने
जो तमाम जद्दोज़हद के बाजूद,
जो बरगद नहीं बन पाते
दबाए रखते हैं अपनी जड़ों को कहीं गहरे में

क्योंकि मौसम का बदलना तय है और हालात का भी़……………