Sunday

स्वागत है, तुम्हारा नवागत हे नए वर्ष











काट बीते वर्ष की फसल
अतीत के खलिहान में रख,
खोल द्वार दिशाओं के
चल पड़ा सूरज
हाँक समय का रथ.

भोर की किरणें
लिख गयीं पर्वत शिखरों पर
प्रशस्ति पत्र,
स्वागत है, तुम्हारा नवागत
हे नए वर्ष,
हों नए-नए विमर्श.

अब न लौटें दफ़न हो चुके
मृतक पराजय के क्षण,
दूर हो भ्रम के भूकम्पों का भय
हो आस्था का अभिनन्दन.

मुट्ठी भर पलों के बीज
कर दें धरती का श्रृंगार,
रचें शिल्प उच्चतम आदर्शों के
शिल्पी मानव के हाथ. 

झलक उठें हर अंतर में
रचयिता की दृष्टि का उत्कर्ष,
स्वागत हैं, तुम्हारा नवागत
हे नए वर्ष,
हों नए-नए विमर्श...

1 comment:

Tamasha-E-Zindagi said...

आपकी यह पोस्ट आज के (शुक्रवार, ११ अप्रैल, २०१४) ब्लॉग बुलेटिन - मसालेदार बुलेटिन पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई